Saturday, December 29, 2012

. . . surrounded by things . . .

Pen on paper drawing by Akshay Ameria 
 
I have spent most of my life surrounded by things I love. 
In spite of having things around me. . .

Wednesday, December 26, 2012

Monday, December 24, 2012


Nature is a revelation of God; art a revelation of man.

                                                         - Henry Wadsworth Longfellow

Sunday, December 23, 2012

Why are you knocking at every other door ?


Why are you knocking at every other door ?
go, knock at the door of your own heart.
~ Rumi

Friday, August 3, 2012

मैंने सपने दाल दिए हैं ओस के उस ढेर में ...

Sunday, February 26, 2012

जीवन में कुछ भी अचानक नहीं होता

जीवन में कुछ भी अचानक नहीं होता

जीवन में कुछ भी अचानक घटित नहीं होता. जब हम पूर्व की प्रक्रिया से अनभिज्ञ
रहते हैं, तब प्रतीत होता है कि घटना अकस्मात् घटित हुई है. अन्यथा प्रत्येक घटना
घटने से पूर्व अपना निश्चित समय अवश्य लेती है. प्रत्येक घटना का कोई कारण या
उद्देश्य अवश्य होता है. जिन घटनाओं का तत्काल कोई कारण नहीं दिखाई देता उन घटनाओं
के बीज बहुत दूर भूतकाल में छिपे होते
हैं. कर्म और फल का यही अंतराल हमें भ्रमित कर देता है. हमारे अधिकतर कार्यों का
जन्मदाता हमारे विचार भाव हैं. हम जो सोचते हैं और करते हैं, वह कुछ भी शून्य या
अर्थहीन नहीं है, प्रत्येक विचार एक मुक्त ऊर्जा है, जो हमसे निकल एक मार्ग पर
चलती है. ये विचार हमारे भाग्य को अपनी ही करणी का शिशु बना देते हैं. इस तरह हम
अपने ही संकल्प के परिश्रम से जोती और खोदी क्यारियों से अपने विगत विस्मृत कर्मों
के फल काटते है. एक अज्ञात विगत से जन्में हम वर्तमान में रहते हैं. श्रीअरविन्द
लिखते हैं “एक अंधा देवता हमारे भाग्य का
सर्जनहार नहीं है. एक चित्त शक्ति ने जीवन का चित्र आंका है, जिसकी प्रत्येक रेखा
और घुमाव में एक अर्थ छिपा है.”
प्रकृति न केवल संकेत देती है बल्कि आने
वाली परिस्थितियों के लिए तैयार होने का अवसर भी देती है. लेकिन इन संकेतों को
केवल हमारा शांत और मूर्छा रहित मन ही समझ सकता है. मूर्छा केवल नशीले पदार्थों की
नहीं होती. लालच, ईर्ष्या, भय, मोह, घृणा या अहंकार भी मूर्छा के ही सामान हैं. इसी
कारण ऋषि- मुनि कहते हैं “पूर्ण जाग्रत अवस्था में पाप
संभव नहीं है.” सब कुछ एक नियम के अनुसार ही होता है. इस
संसार में नियम तोड़ने की फितरत तो केवल मनुष्य की हैं और यही उसकी उन्नति और पतन
के कारण भी है. हमारा स्वास्थ्य भी अचानक खराब नहीं होता. चूंकी हमारा शरीर के साथ
संचार बहुत कमजोर है, इसलिए जब तक कोई पेथोलोजिकल लक्षण दिखाई नहीं देता, हमें
अपनी बीमारी का अहसास ही नहीं होता. कई जेनेटिक बीमारियों की इबारत तो जन्म से
पूर्व ही लिख दी जाती है. योग और ध्यान हमारा हमसे परिचय कराते हैं. जब यह परिचय
प्रगाढ हो जाता है तब पूर्व संकेत मिलते हैं, जो हमें बीमारी से बचाते हैं. यही
सजगता दुर्घटनाओं को टालने में भी हमारी मदद करती है या नुकसान को कम करती हैं.
हम आज जहाँ हैं, वहाँ भी अचानक नहीं पहुचे
हैं. अपनी पिछली जिंदगी के पन्नों को ध्यान से पढ़ें तो पाएंगे यह सब वर्षों पूर्व
हमारे द्वारा निश्चित की गई प्राथमिकताओं के अनुसार ही हैं. कई बार प्रकृति भी किसी
विशेष गुण को परिलक्षित करने के उद्देश्य से जीवन में परिवर्तन लाती है. एक अनजान पथ
सामने आ जाता है, जिस पर कभी चलने का सोचा भी न था. परन्तु यह अनजान पथ हमारी
पूर्व योजना के सीमित प्रतिफल से कई गुना अधिक फलदायी सिद्ध होता है. क्योंकि यह विश्व
नियति है. महात्मा गांधी अफ्रिका में बैरिस्टर बनने गए थे. एक अंग्रेज उन्हें
ट्रेन से बाहर धकेलता है और यह घटना उन्हें बैरिस्टर से राजनेता बना देती है.
अमिताभ बच्चन आकाशावाणी में उदघोषक की नौकरी कर संतुष्ट होना चाहते थे. लेकिन यह सृष्टि
उनसे कुछ और ही अपेक्षा कर रही थी. हमारी योजना और दूर दृष्टी सीमित है, और उस परम
अगोचर की दृष्टी असीमित है.
किसी मार्ग या कार्य का अंत अगर दुःख है,
तो निश्चित ही उसका आरम्भ भी सुख दायक नहीं हो सकता. केवल सजगता की अनुपस्थिति आरम्भ
में हमें सुख देती है, जो अल्प समय के लिए होता है. सिगरेट, तम्बाकू या शराब का
प्रथम सेवन शरीर बिलकुल स्वीकार नहीं करता. लेकिन सजग हुए बिना हम इस नशे का आनंद
लेते हैं और दुःख के बीज इसी के साथ बो दिए जाते हैं. यह शरीर हमें इसी तरह और भी संकेत
देता है. वो भविष्य में आने वाले संकटों को भी महसूस कर सकता है. अगर हम अपने को
सच्चा और शुद्ध रखें, अपने विचारों को स्पष्ट रखें, हमारा उद्देश्य इस जगत की महत्
प्रगति हो तो फिर पूर्व संकेत मिलेंगे ही. जीवन में कुछ भी फिर अकस्मात् नहीं
होगा. मानव अंतर में एक आत्म शक्ति है, जो हमारे से परे का ज्ञान रखती है.
एक भ्रष्ट, अनुशासनहीन और लापरवाह समाज में
अचानक होने वाली घटनाएं या दुर्घटनाएं अधिक होती हैं. रेल, हवाई या सड़क दुर्घटनाएं
अचानक नहीं होती. इनके पीछे सुरक्षा के नियमों की सतत अवहेलना है. बम ब्लास्ट भी अचानक
नहीं होते बल्कि आंतकवादी कई दिन पूर्व से उसकी तैयारी करते हैं. केवल हमारा
सुरक्षा तन्त्र चौकना नहीं होता. परीक्षा के पेपर अचानक लीक नहीं होते. कोई घोटाला
अचानक नहीं घटता, हाँ अचानक सामने आता है. इस तरह के तंत्र में व्यक्ति भाग्यवादी
भी हो जाता है. क्योंकि यहाँ मेहनत और योग्यता का निरादर होता है. अगर हमारे
व्यक्तिगत जीवन में भी बहुत कुछ अचानक घट रहा है, तो अपनी जीवन पद्धति का विश्लेषण
अवश्य करें. हो सकता है कि हमारी गलत प्राथमिकताएं के कारण हम आने वाले संकट को
नहीं देख पा रहें हो. जैसे हार्ट अटैक अचानक नहीं आता. परिवार के लिए यह अचानक हो
सकता है, परन्तु जिसे आता है उसे पहले कई संकेत मिल चुके होते हैं. कोई व्यक्ति
अचानक आत्म हत्या नहीं करता. लंबे समय तक अपने आप से जूझता है. यहाँ तक कि प्रकृति
में भूकम्प, ज्वालामुखी या सूनामी भी अचानक नहीं आते. बस हम अभी तक प्रकृति के रूख
को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं
मन उन घटनाओं को तो स्वीकार कर लेता है जिसकी प्रक्रिया वह देखता है, अनुभव
करता है. जैसे कोई अपना अगर लंबे समय से बीमार है तो उसकी मृत्यु भी अनजाने में
स्वीकार्य हो जाती है. लेकिन अचानक घटी दुर्घटना की स्वीकृति आसान नहीं है. हमारा
मन उसका कारण और उद्देश्य ढूंढता हैं. मानसिक आघात अस्वीकृती के सिवाय और कुछ नहीं
है. जीवन की शांति पूर्ण स्वीकृति में है. लाओत्से का तो पूरा दर्शन ही स्वीकृति
पर आधारित है. यानि जो मन का हो अच्छा और जो मन का न हो तो और भी अच्छा. पूर्ण स्वीकृति
अंतर्जगत में प्रगति के लिए लंबी छलांग है, परन्तु बाह्य जगत में प्रगति के लिए बाधा
है.